हम कई बार देखते हैं कि कुछ बच्चे या व्यस्क सही से बोल नहीं पाते हैं और रुक-रुक कर शब्दों का उच्चारण करते हैं। इसे आम भाषा में हकलाना कहते हैं। हकलाना आमतौर पर 2 से 8 साल के बच्चे में देखी जाने वाली समस्या है व लगभग 5 प्रतिशत बच्चे बोलते समय हकलाते हैं। कुछ बच्चे उम्र बढ़ने के बाद भी इस समस्या से बाहर नहीं आ पाते हैं और व्यस्क होने पर भी हकलाते हैं। यह उनके जीवन पर नकारात्मक असर डालता है। हकलाने का कोई सम्भव इलाज नहीं है पर कुछ थेरेपी इससे उभरने में मदद कर सकती है।

हकलाना के लक्षण

हकलाना एक तरह का Language disorder है। हकलाने का अर्थ है बोलते समय शब्दों को सही से बोलने में कठिनाई होना, रुक-रुक कर बोलना, और कुछ शब्दों को कहने में असमर्थ होना, वाक्य को बोलना शुरू करने में दिक्कत होना। बचपन में हकलाने की समस्या होना आम है, पर यदि समय के साथ यह ठीक न हो तो व्यस्क होने पर भी बातचीत करने में दिक्कत होती है और शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ती है। सामान्यतः इसकी शुरुआत बचपन में होती है लेकिन 80 प्रतिशत बच्चे कुछ समय बाद हकलाना बंद कर देते हैं। प्राप्त डाटा के अनुसार व्यस्क होने पर लड़को में यह समस्या लड़कियों की तुलना में ज्यादा देखी गयी है।

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जब बोलने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मांसपेशियाँ सही से कार्य नहीं करती हैं और अनियंत्रित रूप से हिलती हैं तो हकलाने की समस्या होती है और शब्दों को एक लय में बोलना कठिन होता है। साथ ही बोलने में रूकावट उत्पन्न होती है और कुछ शब्दों को दोहराया जाता है, हकलाने का कोई एक निश्चित कारण नहीं है, इसके कई कारण हो सकते हैं।

हकलाने वाला व्यक्ति अक्सर एक ही शब्द को कई बार बोलता है, इसे उदाहरण से समझते हैं। जैसे – मैं मैं मैं आपके साथ नहीं आ सकता। आ आ आप जा सकते हैं। कई लोग हकलाने के साथ आँख भी झपकाते हैं तथा जबड़ा मरोड़ कर बात करते हैं। कुछ लोग हकलाने की समस्या होने पर तेजी से और चिल्ला कर बोलने की कोशिश करते हैं क्योंकि ऐसा करने पर वह पाते हैं कि उन्हें हकलाने की समस्या नहीं हो रही है।

हकलाने के प्रकार

हकलाना केवल एक प्रकार का नहीं होता है, इसके मुख्य तीन प्रकार होते हैं – विकासात्मक हकलाना, न्यूरोजेनिक हकलाना, मनोवैज्ञानिक हकलाना

विकासात्मक हकलाना (Developmental stuttering)

विकासात्मक हकलाना छोटे बच्चो में पाया जाता है जिनकी उम्र 2 से 7 साल तक हो सकती है। इस तरह का हकलान तब प्रारम्भ हो सकता है जब बच्चा बोलना सीखता है। वह सारे शब्द सिख जाता है फिर भी उसे कुछ समय तक हकलाने की समस्या होती है। बच्चा शब्दों को दोहराता है, एक ही शब्द को काफी लम्बा कर देता है जैसे – खिखिखिखिलौना। बोलते समय आँखे झपकाता है, कम से कम बोलने की कोशिश करता है, शब्दों को ठीक से न बोल पाने के कारण आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है।

विकासात्मक हकलाना (Developmental stuttering) की समस्या को कई तरीको से दूर किया जा सकता है। यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा काफी समय से हकलाने की समस्या से जूझ रहा है तो बाल रोग विशेषज्ञ की मदद लेना चाहिए जिससे की डॉक्टर स्पीच थेरेपी के द्वारा इससे निपटने में मदद कर सकते हैं।

न्यूरोजेनिक हकलाना (Neurogenic Stuttering)

न्यूरोजेनिक हकलाना दिमागी चोट के कारण हो सकता है, यह विकासात्मक हकलाना (Developmental stuttering) से काफी अलग है। इस बीमारी के होने के कई कारण हैं। जिसमे ब्रेन स्ट्रोक, तंत्रिका तंत्र सम्बन्धित बीमारियाँ, मस्तिष्क में लगी किसी तरह की चोट, ट्यूमर, दवाओं के दुष्प्रभाव आदि शामिल है। मस्तिष्क में किसी तरह की बीमारी से पहले व्यक्ति सामान्य व्यक्ति की तरह ही बोलता है लेकिन घटना के बाद वह हकलाने लगता है और उसे बोलने में समस्या आने लगती है, और वह अनुभव करता है कि उसके लिए कुछ बात संवाद करना मुश्किल हो रहा है इसके कारण वह काफी तनाव भी महसुस भी कर सकता है।

न्यूरोजेनिक हकलाहट में व्यक्ति बीच के सेंटेंस में भी हकला सकता है, यह जरुरी नहीं है कि वह शुरुआत के शब्दों को बोलने में ही दिक्कत का एहसास करे। इस समस्या का निदान भी संभव है, विशेषज्ञ से परामर्श ले कर इस समस्या से बाहर आया जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक हकलाना (Psychological stuttering)

हकलाहट जो मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण जन्म लेती है, मनोवैज्ञानिक हकलाहट कहलाती है। मनोवैज्ञानिक कारण जैसे तनाव, Emotional Trauma (भावनात्मक आघात), PTSD, अप्रिय घटना। इसमें भी व्यक्ति शब्दों को दोहराता है, बोलते बोलते एकाएक रुक जाता है या शब्दों को सही से बोल नहीं पाता है। इस तरह की हकलाहट किसी भी उम्र में हो सकती है। अक्सर यह किसी तनावपूर्ण घटना के बाद होती है, इसलिए व्यक्ति इसमें अत्यधिक तनाव में रहता है और भय तक महसुस कर सकता है। Psychological Counseling तथा Stress Management के द्वारा इसका इलाज सम्भव है, Mental Health Professionals व्यक्ति के इतिहास पर ध्यान देते हैं और बीमारी का कारण जानने की कोशिश करते हैं जिसके बाद ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है।

जो व्यक्ति बचपन में हकलाता था और फिर युवा अवस्था में यदि वह किसी गंभीर तनाव का सामना करता है तो उसमें फिर से हकलाने के लक्षण आने की सम्भावना होती है। या फिर जिन लोगों का मानसिक बीमारी का इतिहास रहा है वह भी इस तरह की हकलाहट के शिकार हो सकते हैं।

Psychological Stuttering के उपचार में कुछ थेरेपी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त तनाव कम करने की तकनीकें अपनाई जाती हैं, मनोचिकित्सक के द्वारा कुछ दवाएं भी दी जा सकती हैं और दिनचर्या में कुछ परिवर्तनों की भी जरूरत होती है। मरीज के आत्मविश्वास को कम होने से रोकने की जरूरत होती है इसीलिए घर पर भी ऐसा वातावरण निर्मित करना होता है जिससे कि मरीज प्रोत्साहित रहे।

हकलाने का जीवन पर प्रभाव

हकलाने के कारण व्यक्ति में आत्मसम्मान की कमी हो जाती है जिस कारण वह कई क्षेत्रो में पीछे रह जाता है। समाज में लोगों के साथ मिल कर काम करने में असमर्थ हो जाता है और किसी भी भाषण या मीटिंग में शमिल नहीं हो पाता है। यदि कोई बच्चा हकलाने की समस्या से जूझ रहा है तो इसका असर उसके शिक्षण पर सबसे ज्यादा होता है, जिस कारण उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो पाता है। अगर कोई बच्चा कक्षा में हकलाता है तो उसमें Communication Skills डेवलप नहीं होती है जिस वजह से वह अन्य बच्चों की तुलना में कम कुशल होता है।

इसके अलावा व्यस्क होने पर सही से शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाना व्यक्ति को काफी हद तक हताश भी कर सकता है। वह अपने परिवार और मित्रों से दूरी तक बना लेता है, ऐसा उन मामलों में देखा जाता है जो हकलाने के गम्भीर लक्षणों का सामना कर रहे हैं। इस समस्या का निदान सम्भव है इसके लिए अपने परिवार से खुल कर बात करने की जरूरत होती है और यदि आपके बच्चे में हकलाने के लक्षण हैं तो समय पर उसे भी परामर्श दिलाए ताकि उसे किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।

निष्कर्ष:

हकलाना एक ऐसी समस्या है जिसमें कोई व्यक्ति ठीक से शब्दों का उच्चारण नहीं कर पता है या रुक-रुक कर अथवा शब्दों को दोहराकर बोलता है। इसके तीन प्रकार हैं: विकासात्मक हकलाना, न्यूरोजेनिक हकलाना, मनोवैज्ञानिक हकलाना। यह समस्या व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है। लेकिन इसका इलाज संभव है।

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